आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की एबीसीडी

बी यानी बायस यानी पक्षपात
कंप्यूटर की मदद से चलने वाली सभी मशीनों में डेटा फीड होता है. ये डेटा एल्गोरिदम की बुनियाद पर काम करता है.

लेकिन मशीन बनाने वालों ने इनके साथ भी भेदभाव कर दिया. जैसे नौकरी देने वाले रोबोट में ऐसा डेटा फ़ीड किया जो मर्दों के मुक़ाबले महिलाओं को कम आँकता है. या गोरी रंगत वालों के मुक़ाबले गहरे रंगत वालों को बड़ा अपराधी मानता है.

तकनीक के दिग्गजों पर इस समस्या को हल करने का दबाव बढ़ने लगा है.

सी फॉर चैटबॉट
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस वाली मशीनें इंसानों की तरह बातें करती हैं.

ये भाषा के दो स्तर अपनाती हैं. पहला नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग और दूसरा नैचुरल लैंग्वेज जेनरेशन.

हम इन मशीनों से जैसे बात करते हैं, वैसे ही ये हमसे बातें करती हैं. इन्हें ही हम चैटबॉट यानी बातूनी मशीनें कहते हैं.

डी यानी डिज़ाइन
किसी भी चीज़ की डिज़ाइनिंग चुनौती भरा और वक़्त खाने वाला काम है. ख़ास तौर से कारों के डिज़ाइन बनाना आसान काम नहीं है.

लेकिन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए इस काम को ज़्यादा तेज़ी और बेहतर तरीक़े से किया जा रहा है.

एफ़ यानी फ़ुटबॉल
खेल के मैदान में खिलाड़ी का एक फ़ैसला पूरे खेल का रूख़ बदल देता है.

फ़ुटबॉल की प्रीमियर लीग का सबसे बड़ा क्लब चेल्सी एफ़सी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए ये आकलन करने की कोशिश कर रही है कि कौन सा ख़िलाड़ी खेल के मैदान में कौन सा अगला दांव चलने वाला है.

इससे टीम को विरोधी टीम के दांव समझने में आसानी होगी. इस तकनीक का इस्तेमाल ना सिर्फ़ फ़ुटबॉल के खेल में किया जाएगा, बल्कि अन्य खेलों में भी किया जाएगा.

जी फ़ॉर गैन यानी जेनेरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क
बड़े लोगों की फ़ोटो के साथ अक्सर छेड़छाड़ कर दी जाती है. लेकिन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से इसे रोका जा सकता है साथ ही गेन यानी जेनेरेटिव एडवरसरियल नेटवर्क के ज़रिए नई तस्वीरें बनाई जा सकेंगे.

एल्गोरिदम की मदद से एक कंप्यूटर में सेलेब्रिटी की तस्वीरें फीड की जाएंगी और नई तस्वीरें बनाई जाएंगी. जबकि दूसरे कंप्यूटर में प्रोग्रामिंग की मदद से असली और नक़ली तस्वीर की पहचान की जाएगी.

साथ ही ये भी पता लगाया जाएगा कि जो तस्वीर कंप्यूटर ने जेनरेट की है वो असली जैसी दिखाई देती है या नहीं.

शुरुआत में गेन तकनीक से बनने वाली तस्वीरों का रिज़ॉल्यूशन अच्छा नहीं था. लेकिन अब काफ़ी बेहतर तस्वीरें बनाई जा रही हैं.

एच फ़ॉर हैलुसिनेशन
इंसानों के दिमाग़ अक्सर मतिभ्रम या ग़लतफ़हमी के शिकार हो जाते हैं. ऐसा अक़्लमंद मशीनों के साथ भी होता है. हाल ही में अमरीका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने अल्गोरिदम का एक नया वर्जन मशीन में लगाया. जिसके बाद मशीन ने चीज़ों को कुछ का कुछ पहचानना शुरू कर दिया.

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