राम रहीम पर पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्या मामले में अदालत सुनाएगी फ़ैसला

उस दिन करवाचौथ का दिन था. मेरी मां को अचानक अपने मायके किसी की मौत का शोक प्रकट करने के लिए जाना पड़ा था."

"मेरे पिता रामचंद्र छत्रपति अक्सर अख़बार का काम करने के बाद घर लेट आते थे. मेरी मां के घर से जाने के कारण उस दिन मेरी छोटी बहन और भाई ने मुझे घर जल्दी आने के लिए कहा इसलिए मैं घर पर था. मेरे पिता भी उस दिन करवाचौथ का दिन होने के कारण जल्दी घर आ गए थे."

24 अक्तूबर, 2002 की घटना को याद करते हुए रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति भावुक हो जाते हैं.

"मेरे पिता मोटर साइकिल आंगन में खड़ा करके अंदर आए ही थे कि किसी ने आवाज़ देकर उन्हें बाहर आने को कहा. जैसे ही वो बाहर गए, अचनाक स्कूटर पर आए दो नौजवानों में से एक ने दूसरे को कहा- मार गोली. और उसने मेरे पिता पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं."

रामचंद्र छत्रपति हरियाणा के सिरसा में 'पूरा सच' नाम के अख़बार के संपादक थे, जिनकी 2002 में हत्या कर दी गई थी.

इस मामले में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह और कुछ डेरा 'प्रेमी' नामज़द हुए और 11 जनवरी को पंचकुला में एक सीबीआई अदालत इस मामले में फ़ैसला सुनाएगा.

अंशुल ने आगे बताया, "हम तीनों ने शोर मचाया और अपने पिता को संभालने की कोशिश की. पिताजी गली में से उठकर घर के दरवाज़े तक तो आ गए लेकिन फिर गिर पड़े. हमारा शोर सुनकर गोली चलाकर भागे एक नौजवान को घर से थोड़ी दूर एक पुलिस चौकी पर तैनात एक सिपाही ने पकड़ लिया. इसकी बाद में पुलिस ने शिनाख़्त भी कर ली."

"अब तक लोग इकट्ठे हो गए थे. हमने पड़ोसियों की कार मांगी और पिताजी को सरकारी अस्पताल ले गए. मेरे पिता को गोली मारे जाने की ख़बर आग की तरह फैली और रिश्तेदारों समेत कई लोग अस्पातल में इकट्ठे हो गए."

उनकी हालात बहुत ख़राब थी इसलिए उन्हें रोहतक मेडिकल कॉलेज रेफ़र कर दिया गया. वहां उनकी हालत में कुछ सुधार हुआ पर फिर बिगड़ने पर दिल्ली के एक निजी अस्पातल ले जाया गया. वहां उनकी मौत हो गई.

अंशुल ने आरोप लगाया कि उनके पिता बयान देने की स्थिति में थे पर पुलिस ने उनके बयानों को मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज नहीं करवाया.

अंशुल कहते हैं, "हमारे ऊपर कई नेताओं ने दबाव डाला कि हम इस मामले में पीछे हट जाए. हमारे लिए डेरा जैसी बड़ी ताक़त से लड़ना बहुत मुश्किल था. जब ये हुआ तब मेरी उम्र महज़ 22 साल थी और मैं बीए फ़र्स्ट ईयर का छात्र था.

अंशुल ने अपने पिता को याद करते हुए बताया कि उन्हें लिखने का बहुत शौक़ था और वो जुनूनी पत्रकार थे. उन्होंने कॉलेज के समय से ही लिखना शुरू कर दिया था.

रामचंद्र छत्रपति ने एलएलबी तक की पढ़ाई की और कुछ समय के लिए उन्होंने वकालत भी की थी.

"उनके द्वारा लिखी गई ख़बरों में अख़बार द्वारा की गई कांट-छांट से वो निराश हो जाते थे. इसलिए उन्होंने अपना अख़बार शुरु करने का फ़ैसला किया. "

संध्याकालीन अख़बार 'पूचा सच' का पहला अंक 02 फ़रवरी, 2000 को प्रकाशित हुआ था. अंशुल ने बताया कि समाज में हो रही घटनाओं का सच उजागर करने के लिए इस अख़बार के पन्नों का इस्तेमाल होता था.

इसलिए उन्होंने कई नेताओं के ख़िलाफ़ बेझिझक होकर ख़बरें प्रमुखता से छापी.

अंशुल के मुताबिक़ मई 2002 में गुरमीत राम रहीम के ख़िलाफ़ शारीरिक शोषण का आरोप लगाते हुए डेरा की एक साध्वी का उस वक़्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के नाम एक गुमनाम ख़त उनके हाथ लगा.

इसकी एक कॉपी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस को भी भेजी गई थी.

साध्वी के इस पत्र को छत्रपति ने 30 मई, 2002 को अपने अख़बार में प्रकाशित किया था. अंशुल का दावा है कि इससे पहले भी डेरे की गतिविधियों को लेकर 'पूरा सच' में ख़बरें प्रकाशित होती रहती थी.

अंशुल का आरोप है कि इस तरह की ख़बरें छपने की वजह से डेरा के कुछ श्रद्धालु उनको धमकाते थे और फ़र्ज़ी केस भी दर्ज करवाए थे.

उनका आरोप यह भी है कि जब उनके पिता रामचंद्र झूठी एफ़आईआर से नहीं डरे तो आख़िर 24 अक्तूबर को जानलेवा हमला करवाया गया.

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