हर्बल चाय या फलाहार का हमारी आंतों पर क्या असर

साल के पहले कुछ हफ्तों में ग्रहण किए जाने वाले डीटॉक्स आहार आहार हमारी आंतों में मौजूद जीवाणुओं के लिए भी लाभकारी होने चाहिए, है न?

यदि आपने पिछले दिनों त्योहारों के दौरान जमकर स्वादिष्ट व्यंजनों का आनन्द उठाया हो तो डीटॉक्स यानी विषहरण का विचार आपको आकर्षित करेगा.

कई सारी चीज़ें इसमें मदद करती हैं जैसे डीटॉक्स मसाज और स्मूदी से लेकर हर्बल चाय और व्रताहार या फलाहार.

ये आपको चमकदार त्वचा, वजन में कमी, स्वस्थ शरीर के वादे भी किए जाएंगे जिससे आप त्योहारों के खानपान के कारण शरीर में उत्पन्न हुए आलस्य को भगा सकें.

नए साल की शुरुआत में शरीर से अशुद्धियों को निकालकर बाहर करने का विचार अच्छा तो लगता है लेकिन क्या आप इसका कोई प्रमाण है कि ये काम करता है या नहीं?

डीटॉक्स शब्द का प्रयोग दो बहुत अलग तरीकों से किया जाता है.

पहले का अर्थ चिकित्सकीय डीटॉक्स कार्यक्रमों से संबंधित है जिसके अन्तर्गत शराब पीने या नशे की समस्या से निपटने में लोगों की मदद की जाती है.

दूसरे तरीके का संबंध उन वादों से है जो हमारे शरीरों से विष को दूर करने के लिए किए जाते हैं.

आधुनिक जीवन शैली में हमारा संपर्क कई तरह के बनावटी रसायनों और प्राकृतिक चीजों से होता है जिनमें से कुछ विषैली हो सकती हैं.

लेकिन इस बात का इतना प्रमाण है कि डीटॉक्स क्रिया से ये विष हमारे शरीर से बाहर किया जा सकेगा.

ये बात सच है कि जिस दिन आप शराब पीना कम करते हैं और एक स्वस्थ आहार की ओर बढ़ते हैं, विषैले पदार्थ आपके शरीर को छोड़ देंगे.

लेकिन ये तो रोज होता है, केवल उस समय नहीं जब आप कच्ची सब्जियों का रस पीते हैं.

शरीर अपने आप बड़ी चालाकी से अंदर उत्पन्न होने वाली नुकसानदायक चीजों को बाहर करता रहता है. अगर शरीर ऐसा न करे तो हम मुसीबत में फंस जाएंगे.

हमारे पूरे शरीर में विषैले तत्वों को बाहर रखने या बाहर करने का काम सतत चलता रहता है.

इसमें त्वचा एक अवरोधक का काम करती है और श्वास प्रणाली में मौजूद सूक्ष्म बाल म्यूकस में मौजूद कणों को रोक लेते हैं जिससे छींक के जरिए उन्हें बाहर किया जा सके.

हमारी आंतों के एक हिस्से में लिम्फेटिक सेल यानी लिंफ की कोशिकाएं होती हैं जिन्हें पायर्स पैचेज कहा जाता है. ये म्यूकस की झिल्ली की परत पर एक गट्ठर बनाती हैं.

छोटी आंत के सबसे निचले हिस्से में पाए जाने वाले इन पैचेज यानी चकत्तों का आकार इन्हें नुकसानदायक कणों को पहचानने और उन्हें बाहर निकालने लायक बनाता है

जिससे ये कण हमारे भोजन के लाभकारी पौष्टिक तत्वों के साथ रक्त में घुल न जाएं.

हालांकि हमें ऐसा लगता होगा कि हमारी आंतें गंदी हैं और उन्हें साफ करने की आवश्यकता है, दरअसल वे अपना काम कर ही रही हैं.

इसके अतिरिक्त आपके गुर्दे हर मिनट में आधा कप रक्त छानते रहते हैं और मूत्र के माध्यम से शरीर में पैदा होने वाले यूरिया जैसे विषैले तत्वों को बाहर करते रहते हैं.

जहां तक शराब की बात है तो इसमें यकृत की पूरी भूमिका होती है। यह प्रक्रिया दो चरणों में की जाती है.

सबसे पहले किण्वक यानी एन्जाइम शराब को एसिटलडिहाइड में परिवर्तित कर देते हैं जो कि विषैला होता है.

लेकिन यह जल्दी ही पहले एसिटिक एसिड और फिर कार्बन डाइ ऑक्साइड तथा जल में परिवर्तित हो जाता है.

यदि आप यकृत की क्षमता से अधिक शराब पीयेंगे तो आपका लीवर यानी यकृत आपकी रफ्तार का साथ नहीं दे पाएगा और आपके खून में शराब की मात्रा बढ़ जाएगी.

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