इन 8 सीटों पर जीत जातीय समीकरण में बंधी है... प्रत्याशी नजदीकी संघर्ष में

मथुरा (उत्तरप्रदेश) से. मेरठ के किठोर कस्बे को पार कर बमुश्किल 30 किमी की दूरी पर हाईवे के किनारे गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा का अल्लाबख्शपुर गांव पड़ता है। यह अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में आता है। शाम छह बजे चार-पांच गाड़ियों के साथ बसपा प्रत्याशी कुंवर दानिश अली का काफिला आता है। मस्जिद परिसर के अंदर लोगों को वे कहते हैं कि यह चुनाव हमारे वजूद को बदलने वाला है। अगर अभी चूके तो फिर लोकतंत्र नहीं बचेगा। 18 अप्रैल को वोट देने के बाद ही हमें खाना, खाना है। दूसरे चरण में फंसे प्रत्याशी ऐसी ही अपीलें कर रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक और मथुरा के केआरपीजी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. रमाशंकर पांडे कहते हैं- नगीना, अलीगढ़, फतेहपुर-सीकरी को छोड़कर बाकी जगह भाजपा और गठबंधन में करीबी लड़ाई है। त्रिकोणीय संघर्ष में ज्यादा चुनौती है। कोई एक भी वोट छोड़ना नहीं चाहता। मथुरा से फिर हेमा मालिनी भाजपा उम्मीदवार हैं। हेमा यहां लगातार सक्रिय रही हैं, हर महीने उन्होंने दौरे किए हैं। मथुरा रेलवे स्टेशन का कायाकल्प और धार्मिक पर्यटन केंद्रों पर अच्छा काम हुआ है। उनका मुकाबला राष्ट्रीय लोकदल के कुंवर नरेंद्र सिंह से है।

नरेंद्र स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा उभारने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी कोशिश को यहां हवा मिलती भी दिख रही है। कारोबारी राजीव अग्रवाल कहते हैं कि स्थानीय प्रत्याशी होगा तो वह सहज उपलब्ध होंगे। हेमा मालिनी से जब स्थानीय और बाहरी के मुद्दे पर बात की गई। तो वे बोलीं- मेरा यहां घर है, क्या मैं बाहरी दिखती हूं? वहीं कुंवर नरेंद्र सिंह को 17.86 लाख वोटों में 3.8 लाख जाट, 2.1 लाख ठाकुर, 1.7 लाख मुस्लिमों के साथ ही दलित और पिछड़े वोट मिलने का भरोसा है। 2014 में 3.5 लाख वोट से जीतने वाली हेमा मालिनी कांटे की टक्कर में दिखती हैं। उनकी मुश्किलों को कांग्रेस के ब्राह्मण उम्मीदवार महेश पाठक भी बढ़ा रहे हैं।

फतेहपुर-सीकरी से लड़ रहे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर के लिए बड़ी बाधा जातीय समीकरण तोड़ना है। भाजपा ने दो लाख जाट मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए राजकुमार चाहर को उम्मीदवार बनाया है। 3.2 लाख ब्राह्मण वोटों को ध्यान में रखते हुए गठबंधन से श्रीभगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित को बसपा ने टिकट दिया है। राजबब्बर कठिन त्रिकोणीय संघर्ष में फंस गए हैं। आगरा के सांसद रामशंकर कठेरिया को भाजपा ने इस बार इटावा भेज दिया है। उनकी जगह राज्य में मंत्री एसपी सिंह बघेल को उम्मीदवार बनाया है। एसपी सिंह बघेल के आगे असली चुनौती भाजपा की स्थानीय गुटबाजी से निजात पाना होगी। वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना कहते हैं कि आगरा में सिविल एयरपोर्ट और बेरोजगारी बड़ी समस्या है। आगरा में कांग्रेस ने आयकर आयुक्त रहीं प्रीता हरित को उम्मीदवार बनाया है।

नगीना में सवा छह लाख मुस्लिम, सवा तीन लाख दलित वोटों के सहारे गठबंधन उम्मीदवार गिरीशचंद्र मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं। भाजपा ने यशवंत सिंह को दूसरी बार और कांग्रेस ने एक बार सांसद रही ओमवती को टिकट दिया है। ओमवती की पकड़ सवर्ण वोटरों में अच्छी है। त्रिकोणीय संघर्ष में गठबंधन आगे है।

हाथरस में भाजपा ने इस बार इगलास से विधायक राजवीर सिंह दिलेर को टिकट दिया है। राजवीर सिंह को अपने पिता की राजनीतिक पूंजी का भरोसा है। राजवीर के पिता किशन लाल दिलेर चार बार सांसद रहे हैं। दिलेर के पक्ष में स्थानीय स्तर पर भाजपा-संघ के संगठन का मजबूत होना भी जाता है। साढ़े तीन लाख मुस्लिम वोटों वाली सीट अलीगढ़ में लंबे समय बाद ऐसा हो रहा है कि यहां किसी भी प्रमुख दल ने मुसलमान को टिकट नहीं दिया है। बनिया, ब्राह्मण और ठाकुर वोटों पर मजबूत पकड़ वाले सतीश कुमार गौतम का मुकाबला यहां पूर्व सांसद गठबंधन के उम्मीदवार अजीत बालियान से है। मुस्लिम वोट जितना अधिक बटेंगे उतना अधिक फायदा सतीश गौतम को होगा। यहां त्रिकोणीय संघर्ष है।

अमरोहा में जनता दल सेक्यूलर के महामंत्री रहे और एच.डी. देवेगौड़ा के खास कुंवर दानिश अली बसपा से गठबंधन उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने सचिन चौधरी को टिकट दिया। दानिश का मुकाबला सांसद भाजपा उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर से है। सीधे मुकाबले में तंवर कितने दलित वोट गठबंधन उम्मीदवार के पक्ष में जाने से रोक पाते हैं और दानिश अली कितने मुस्लिम वोटों का बिखराव रोक पाते हैं, यही उनकी हार-जीत तय करेगा।

बुलंदशहर में मुख्य मुकाबला भाजपा के भोला सिंह, गठबंधन के योगेश वर्मा और कांग्रेस के बंसी सिंह में है। यह भाजपा का गढ़ है। भोला सिंह 2014 में चार लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे। कहा जा रहा है कि मुकाबला त्रिकोणीय है, फिर भी भोला सिंह की राह आसान है।

2014 की स्थिति
नगीना, बुलंदशहर, हाथरस, आगरा, अमरोहा, अलीगढ़, मथुरा, फतेहपुर-सीकरी सभी सीटें भाजपा ने जीती थी।

गठबंधन की स्थिति
उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और रालोद साथ लड़ रहे हैं। रालोद मथुरा, तो सपा हाथरस सीट पर चुनाव लड़ रही है। शेष छह सीट आगरा, बुलंदशहर, नगीना, अमरोहा, फतेहपुर-सीकरी और अलीगढ़ सीटों पर बसपा लड़ रही है।

मुद्दों की स्थिति
बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। मथुरा-आगरा और फतेहपुर सीकरी में पीने के पानी की समस्या है। अलीगढ़ में ताला उद्योग, नगीना में कताई मिल, बुलंदशहर में खुर्जा का पॉटरी उद्योग...तीनों बदहाली में हैं। एयरस्ट्राइक का शोर है। प्रदूषित यमुना भी बड़ा मुद्दा है।

जातिगत समीकरण
आठ में से चार सीट आगरा, हाथरस, बुलंदशहर और नगीना एससी के लिए रिजर्व हैं। नगीना में करीब छह लाख, आगरा में 2.7 लाख, अलीगढ़ में 3.5 लाख, अमरोहा में 5.7 लाख, बुलंदशहर में तीन लाख मुस्लिम वोटर हैं। मथुरा में करीब 3.75 लाख, अलीगढ़ और फतेहपुर सीकरी में करीब दो लाख, अमरोहा में 1.25 लाख जाट मतदाता हैं।

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